आरती ॐ जय जगदिश हरे Aarati Om Jay Jagadishahare

  1. Om Jay jagadish hare

ॐ जय जगदिश हरे …in Hindi and Nepali

ओम जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे !

ॐ जय जगदिश हरे …

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का !!

ॐ जय जगदिश हरे …

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी !!

ॐ जय जगदिश हरे …

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी !!

ॐ जय जगदिश हरे …

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता !!

ॐ जय जगदिश हरे …

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति !!

ॐ जय जगदिश हरे …

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे, करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे !!

ॐ जय जगदिश हरे …

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, श्रद्धा भक्ति बढाओ, संतन की सेवा !!

ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु  जय जगदीश हरे

आरती ॐ जय जगदिश हरे नेपाली भर्सन

Om Jay Jagadishahare Nepali 

ॐ जय जगदीश हरे प्रभु जय जगदीश हरे |

प्रभुका चरण उपासक कति-कति पार तरे ||१||
ॐ जय जगदीश हरे ..

मनको थाल मनोहर प्रेम रुप वाती -प्रभु प्रेमरुप वाती |
भाव कपुर छ मङ्गल आरती सब भाती || २||
ॐ जय जगदीश हरे..
नित्य-निरन्जन-निर्मल कारण अविनाशी |
शरणागत प्रतिपालक चिन्मय सुख राशी ||३||
ॐ जय जगदीश हरे….

सृष्टिस्थितिलय कर्ता त्रिभुवनका स्वामी |
भक्ति सुधा वर्षाउ शरण पर्यौ हामी ||४||
ॐ जय जगदीश हरे….

आसुर भाव निवारक तारक सुखदाता |
गुण अनुरुप तिमि ह्वौ हरि हर अनि धाता ||५||
ॐ जय जगदीश हरे….

युग-युग पालन गर्छौ अगणितरुप धरि |
लिलामय रस विग्रह करुणामूर्ती हरि ||६||
ॐ जय जगदीश हरे…

समता शान्ति प्रदायक, सज्जन हितकारी |
चरण शरण अव पाऔ प्रभु भवभय हारी ||७||
ॐ जय जगदीश हरे….

सम्यम सुर सरिताको अविरल धार बहोस् |
जति-जति जन्म भए पनि प्रभुमा प्रेम रहोस्||८||
ॐ जय जगदीश हरे….

प्रेमसहित शुभ आरती जसले नित्य गर्यो |
दिन-दिन निर्मल वन्दै त्यो भव सिन्धु तर्यो ||९||
ॐ जय जगदीश हरे…. ॐ

जय जगदीश हरे प्रभु जय जगदीश हरे |
प्रभुका चरण उपासक कति-कति पार तरे ||१०||
ॐ जय जगदीश हरे

अथ पुष्पान्जली    

नमो स्तवननन्ताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।

सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।1।।

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बु फलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।।2।।

कर्पुर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्र हारम् ।

सदावसन्तं हृदयार वृन्दे भवं भवानि सहितं नमामि ।।3।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव, त्वमेव सर्वम्मम देव देवः।।4।।

सशंखचक्रं सकिरिट कुण्डलं सपितवस्रं सरसिरुहेक्षणम् ।

सहारवक्षस्थल कोस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ।।5।।

नमो नमस्ते खिलकारणाय निष्कारणायद्भुतकारणाय ।

सर्वागमान्मायमहार्णवाय नमोपवर्गाय परायणाय ।।6।।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् |

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ||7।।

देवी प्रपन्नातिहरे प्रसीद प्रसीद माता जगतोखिलस्य

प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य ।।8।।

ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु ।।9।।

कायेनवाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।

करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणयेति समर्पयेतत् ॥10।।

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